Monday, January 22, 2018

Nice poem

I wish that the poem is recited at all protest rallies against this fascist regime.

ANTHEM

This poem got written today. It was churning inside me for a long time but got crystallized only in last two days. This is an expression of deep pain and anguish on what is becoming of once generally egalitarian society of India. I live in New Zealand and want india to become a progressive society like it where people don't hero worship their leaders but expect accountability and transparency. Where people like us, who have come to live there get far more dignity and equality than what citizens of India give to each other or how govt itself discriminate between it's own citizens on the basis of religion. It pains me a lot how country is being polarized and fractured on communal lines and how intimidation, hate and bigotry have become respectable and how people are being brainwashed by incessant fake propaganda. Fortunately a large number of deeply secular Hindus are taking a bold stand against this talibanization of Hinduism and rise of fascist reign of intimidation, violence, bigotry And want to bring back the egalitarian spirit of India for which India is known.
This poem is a loud NO against all this.
Share it with all.

ANTHEM

जब ज़ुल्मतें बढ़ जाएं बहुत
इक लौ जलाना लाज़िम है
जब हाकिम ही गुमराह करे
इक आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब क़ातिल के संग हाकिम हो
जब हर लब पर इक पहरा हो
जब सहमी सहमी गलियां हों
जब ख़ौफ़ का आलम गहरा हो

आवाम जगाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब क़ातिल उतरें सड़कों पर
जब मुंसिफ भी घबराने लगें।   (मुंसिफ-judge)
जब ताले लबों पर लग जायें
जब अपने आग लगाने लगें

इल्ज़ाम लगाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब हाकिम रहज़न होने लगें
जब हाकिम ज़हर को बोने लगें
जब हाकिम नशे में ताकत के
इंसानी क़दरें खोने लगें

नाम गिनाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब ताक़त सर पड़ चढ़ने लगे
जब ज़ुल्मत हद्द से बढ़ने लगे
जब आवाज़ उठाना जुर्म बने
जब लहू लहू से लड़ने लगे

बरबत पे गाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

जब तास्सुब उनकी फ़ितरत हो
फिरकापरस्ती आदत हो
जब दंगे ही दस्तूर बनें
जब जड़ों में उनकी नफ़रत हो

आवाम जगाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है

बरहना है अमीर ए वतन (बरहना-naked, king is naked)
ये उसको बताना लाज़िम है
ख़ुद तुमने जलाया मेरा चमन
उस तक पहुंचाना लाज़िम है

इस देश के दुश्मन भगवों से
भारत को बचाना लाज़िम है
हम सब एक हैं भारतवासी
ये हाकिम को सिखाना लाज़िम है

नाम गिनाना लाज़िम है
इल्ज़ाम लगाना लाज़िम है
आवाम जगाना लाज़िम है
आवाज़ उठाना लाज़िम है
--------------ब्रजेन्दर "सागर"

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