Sher O Shayri

ज़िन्दगी 

ज़िंदगी तो हल्की फुल्की  हैं
बौझ तो ख्वाहिशों का हैं

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मेरे जज़्बात 

इस हद तक वाकिफ हैं
मेरे जज़्बात से मेरी कलम
इश्क़ भी लिखना चाहूँ
तोह इंक़लाब लिखा जाता हैं

- भगत सिंह
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माचीस

माचीस की तीली सी नहीं मेरी ज़िंदगी
जब मन करता हैं
तभी जलता हूँ
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तमाजत  

माना की धूप की तमाजत बहुत हैं
इस धूप में हमें चलने की
आदत भी बहुत हैं
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ज़ाती मकान थोड़ी हैं 

अगर खिलाफ हैं होने दो जान थोड़ी हैं

ये सब धुआं हैं कोई आसमान थोड़ी हैं


लगेगी आग तो आयेंगे घर कई ज़द में

यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी हैं


मैं जानता हूँ की दुश्मन भी कम नहीं लेकिन

हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी हैं


हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त हैं

हमारे मुँह में तुम्हारी ज़बान थोड़ी हैं


जो आज साहिब -ऐ -मसन्द हैं कल नहीं होंगे

किरायेदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी हैं


सभी का खून हैं शामिल यहाँ की मिट्टी में

किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी हैं


-राहत इंदौरी साब

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तख़्त नशीन 

तुझ से पहले
जो शख्स यहाँ तख़्त नशीन था

उसे भी अपने खुदा होने पर
इतना ही यकीन था
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जन्नत

हमको तो मालूम हैं

जन्नत की हकीकत

पर दिल को खुश रखने को

ग़ालिब ये खयाल अच्छा हैं

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सब कुछ बिकता हैं

सब कुछ बिकता हैं
सब कुछ बिकता हैं
झूठ बिकता हैं
बिकती हैं हर कहानी
तीन लोकों में फैला है
फिर भी बिकता है बोतल में पानी

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ऐब

"जिन के आँगन में अमीरों का शजर लगता है,
उन का हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है।"


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तेरे खत 

तेरे खत आज लतीफे की तरह लगते हैं
खूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज़े वफ़ा आता हैं
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रहनुमाओं की अदा

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो

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सुकून

उन्हें कामयाबी में सुकून नज़र आया
तो वो दौड़ते गए
हमें सुकून में कामयाबी दिखी
तो हम ठहर गए

ख़्वाहिशों के बोझ में बशर
तू क्या क्या कर रहा है
इतना तो जीना भी नहीं
जितना तू मर रहा है

~ Bashar


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दौर ए सियासत

इस दौर ए सियासत का इतना सा फसाना है।
बस्ती भी जलानी है मातम भी मनाना है।

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बेवफाई 
इस तरह मैं तुझसे तेरी बेवफाई का बदला लेता हूँ
जा मैंने तुझे माफ़ किया

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मिट्टी

किस मिट्टी के बने होते हैं कुछ लोग
किस मोड़ पे साथ छोड़ दे

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न्याय

जो हुआ सो न्याय
जो होगा सो भी न्याय

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लोग

पहले तो दिल मेरा तोड़ दिया
 फिर ईद मनाई लोगों ने
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दोस्ती 

दोस्तों के साथ जी लेने का
मौका दे दे ऐ खुदा...
तेरे साथ तो मरने के बाद भी
रह लेंगें ।....

-गालिब



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